किससे प्राथना करें-👇👇
पिता से, पुत्र से या पबित्र आत्मा से ??
सभी प्रार्थनाएँ त्रिएक परमेश्‍वर — पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की ओर निर्देशित होनी चाहिए। बाइबल शिक्षा देती है कि हम एक से या तीनों से ही प्रार्थना कर सकते हैं, क्योंकि तीनों एक ही है। भजनकार के साथ हम पिता से प्रार्थना कर सकते हैं, "हे मेरे राजा, मेरे परमेश्‍वर, मेरी दुहाई पर ध्यान दें, क्योंकि मैं तुझी से प्रार्थना करता हूँ" (भजन संहिता 5:2)। जैसे पिता से प्रार्थना करते हैं वैसे ही हम प्रभु यीशु से प्रार्थना कर सकते हैं, क्योंकि वे एक दूसरे के तुल्य हैं। त्रिएकत्व के एक सदस्य के की गई प्रार्थना, सभी से की गई प्रार्थना है। स्तिफनुस, जब शहीद हो रहा था, तब उसने ऐसे प्रार्थना की थी, "हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर" (प्रेरितों के काम 7:59)। हमें मसीह के नाम से प्रार्थना करनी चाहिए। पौलुस इफिसियों के विश्‍वासियों को उपदेश देता है कि उन्हें सदैव "सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्‍वर पिता का धन्यवाद करना चाहिए" (इफिसियों 5:20)। यीशु ने उसके शिष्यों को आश्‍वासन दिया था कि उसके नाम से जो कुछ वे माँगेंगे — अर्थात् उसकी इच्छा के अनुसार — उन्हें दे दिया जाएगा (यूहन्ना 15:16; 16:23)। इसी तरह से, हमें पवित्र आत्मा से भी और उसकी सामर्थ्य में प्रार्थना करने के लिए कहा गया है। आत्मा हमें प्रार्थना करने के लिए सहायता करता है, यहाँ तक कि तब भी जब हम नहीं जानते कि कैसे और क्या माँगना चाहिए (रोमियों 8:26; यहूदा 20)। कदाचित्, प्रार्थना में पवित्र आत्मा की भूमिका को उत्तम रीति से समझना तब होता है जब हम पिता से, पुत्र (या उसके नाम से) के द्वारा, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से प्रार्थना करते हैं। एक विश्‍वासी की प्रार्थना में तीनों ही पूर्ण रीति से सक्रिया भागी हैं।

यह उतना ही महत्वपूर्ण है कि हमें किस से प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। कुछ गैर-मसीही विश्‍वासी धर्म उनके अनुयायियों को उत्साहित करते हैं कि उन्हें देवताओं के समूह, मृत रिश्तेदारों, सन्तों, और आत्माओं से प्रार्थना करनी चाहिए। रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय अपने अनुयायियों को मरियम और विभिन्न सन्तों से प्रार्थना करने की शिक्षा देता है। इस तरह की प्रार्थनाएँ पवित्रशास्त्र के अनुसार नहीं हैं, और वास्तव में, स्वर्गीय पिता का अपमान है। ऐसा क्यों है, को समझने के लिए हमें प्रार्थना के स्वभाव को देखने की आवश्यकता है। प्रार्थना के कई तत्व हैं, और यदि हम उनमें से केवल दो — स्तुति और धन्यवाद — के ऊपर ही विचार करें तो हम देख सकते हैं कि प्रार्थना अपने निहितार्थ में ही आराधना है। जब हम परमेश्‍वर की स्तुति करते हैं, तब हम उसके गुणों और उसके हमारे जीवनों में किए हुए कार्यों की आराधना कर रहे होते हैं। जब हम धन्यवाद की प्रार्थना को भेंट स्वरूप कर रहे होते हैं, तब हम हमारे प्रति उसकी भलाई, दया और प्रेम से भरी हुई-कृपा की आराधना कर रहे होते हैं। आराधना करना परमेश्‍वर को महिमा देता है, केवल उसे ही जो महिमा पाने के योग्य है। परमेश्‍वर को छोड़ किसी और से प्रार्थना करने की समस्या यह है कि वह अपनी महिमा किसी और से साथ नहीं बाँटता है। सच्चाई तो यह है, कि किसी और से या परमेश्‍वर को छोड़ किसी वस्तु से भी प्रार्थना करना मूर्तिपूजा है। "मैं यहोवा हूँ, मेरा नाम यही है! अपनी महिमा मैं दूसरे को नहीं दूँगा, और जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूर्ति को न दूँगा" (यशायाह 42:8)।

प्रार्थना में अन्य तत्व जैसे पश्चाताप, अंगीकार और याचना भी आराधना के प्रकार हैं। हम यह जानते हुए पश्चाताप करते हैं कि परमेश्‍वर क्षमा और प्रेम करने वाला परमेश्‍वर है और उसने क्रूस के ऊपर उसके पुत्र के बलिदान के द्वारा क्षमा के तरीके का प्रबन्ध किया है। हम हमारे पापो को अंगीकार करते हैं क्योंकि हम जानते हैं "वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्‍वासयोग्य और धर्मी है" (1 यूहन्ना 1:9) और हम इसके लिए उसकी आराधना करते हैं। हम उसके पास हमारी विनतियों और मध्यस्थता की प्रार्थनाओं के साथ आते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि वह हम से प्रेम करता है और हमारी सुनता है, और हम उसकी दया और कृपा के लिए उसकी आराधना करते हैं जिसमें होकर वह हमारी सुनता और उत्तर देता है। जब हम इन सभी बातों पर ध्यान देते हैं, तब यह देखना आसान हो जाता है कि हमारे त्रिएक परमेश्‍वर को छोड़ किसी और से प्रार्थना करना सोच से परे की बात है क्योंकि प्रार्थना आराधना का एक प्रकार है, और आराधना परमेश्‍वर और केवल परमेश्‍वर के लिए ही आरक्षित की गई है। हमें किस से प्रार्थना करनी चाहिए? इसका उत्तर परमेश्‍वर है। परमेश्‍वर से प्रार्थना करना, और केवल परमेश्‍वर से ही प्रार्थना करना, इस तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि हम त्रिएक में से किस को हमारी प्रार्थनाओं को सम्बोधित करते हैं। 
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