परमेश्वर को व्यक्तिगत् रूप से जानना।

 ये चार बातें बताती हैं कि किस प्रकार परमेश्वर के साथ व्यक्तिगत् संगति में प्रवेश किया जाए, और किस प्रकार उस जीवन का अनुभव लिया जाए, जिसके लिए आप सृजे गए हैं।

1. परमेश्वर आपको प्रेम करते हैं और उसे व्यक्तिगत् रुप से जानने के लिए उसने आपको सृजा है।

जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इससे प्रगट हुआ कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है कि हम उसके द्वारा जीवन पाएँ।  (1 यूहन्ना 4:9

और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जानें।।( यूहन्ना 17.3)

2. हम अपने पाप के कारण परमेश्वर से पृथक हो चुके हैं, इसलिए हम उसे न जान सकते हैं, न ही उसके प्रेम का अनुभव कर सकते हैं।

पाप किया है?...

हमें परमेश्वर के साथ एक रिश्ता बनाने के लिए सृजा गया, परन्तु हमने उसे स्वीकार नहीं किया और इस कारण रिश्ता टूट गया।

परमेश्वर को अस्वीकार करना, और किसी भी अन्य चीज़ों कि ओर अपने जीवन का निर्माण करने को ही बाइबल पाप कहती है। हम इसे, स्वार्थी कार्यों और व्यवहारों, परमेश्वर की आज्ञा का पालम न करके, और उसके प्रति उदासीन होने के द्वारा दर्शातें हैं।

प्रत्येक व्यक्ति पापी है। 

इसलिये कि सब ने पाप किया है; और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।  

- रोमियों 3:23

पाप की परिणाम है।

"क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है" - रोमियों 6:23

परमेश्वर सिद्ध है और वह हमें हमारे पापों के लिए जिम्मेदार ठहराता है। परमेश्वर को अस्वीकार करने की सजा है।

▲ - पवित्र परमेश्वर | पापी मनुष्य

परमेश्वर सिद्ध है और हम पापी हैं। हम दोनों के बीच में, पाप के कारण, एक बड़ी खाई है।

हम इस खाई को अच्छे कर्मों या किसी धर्म के पीछे चलने के द्वारा पाटने का प्रयास करते हैं। परन्तु, हमारे सारे प्रयास व्यर्थ हैं क्योंकि ये पाप की समस्या का हल नहीं कर सकते हैं जो हमें परमेश्वर से दूर रखता है।


3.यीशु ही, मनुष्य के उद्धार के लिए, परमेश्वर की ओर से दिया हुआ एकमात्र साधन हैं। केवल उनके द्वारा ही हम परमेश्वर को जान सकते हैं, और उनके प्रेम और क्षमा को प्राप्त कर सकते।

यीशु ही परमेश्वर है!!

वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है। वह सभी वस्तुओं में प्रथम है और सारी सृष्टि में प्रधान है। - कुलुस्सियों 1:15

यीशु हमारे बदले मरे!!

इसलिए कि मसीह ने भी, अर्थात् अधर्मियों के लिये धर्मी ने, पापों के कारण एक बार दु:ख उठाया, ताकि वह हमें परमेश्वर के पास पहुँचाए। - 1 पतरस 3:18अ

यीशु फिर से जी उठे!!

"उसने दु:ख उठाने के बाद बहुत से पक्के प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा, और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा" - प्रेरितों के काम 1:3अ

उनके पुनरूत्थान ने प्रमाणित किया वे परमेश्वर थे और उन्होंने हमारे स्थान पर हमें मिलने वाली सजा को उठा लिया।

यीशु ही एकमात्र मार्ग है!!

यीशु ने कहा, 'मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।' - यूहन्ना 14:6

परमेश्वर अपने प्रेम को साबित करते हैं!!

"क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।" - यूहन्ना 3:16

                                      ▲ = परमेश्वर † = यीशु

यद्यपि हम सदैव के लिए परमेश्वर से अलग होने के योग्य थे, परन्तु परमेश्वर ने अपने प्रेम में यीशु को क्रूस पर हमारे पापों के लिए मरने को भेज दिया।

यीशु के द्वारा, परमेश्वर ने हमें उससे अलग होने वाली खाई को पाट दिया है, और हमारे लिए क्षमा के मार्ग का प्रबन्ध किया और उसके साथ संगति को बहाल कर दिया।

4. हम में से प्रत्येक को, यीशु मसीह में अपना भरोसा रखते हुए, उन्हें अपने मुक्तिदाता व प्रभु के रूप में स्वीकार करना चाहिए। केवल तब ही हम परमेश्वर को व्यक्तिगत् रूप से जान सकते हैं।

•इस प्रतिक्रिया मे निम्न बातें हैं!!

  1. सहमत होना

 परमेश्वर के साथ सहमत होना कि हम पापी हैं, और अपने पापों से मुड़ने का निर्णय लेना।

         2.परमेश्वर पर भरोसा करना

कि वह हमें पूरी तरह से क्षमा करेंगे क्योंकि यीशु हमारे पापों के लिए मारा गया।

        3.फैसला करना

कि यीशु को अपने जीवन में प्रथम स्थान देते हुए, उनके पीछे चलेंगे।

यह रिश्ता ब्याकीगत है!!

परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। यूहन्ना 1:12

यह रिश्ता एक उपहार है!!

"क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, बरन् परमेश्वर का दान है, और न कर्मो के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।" - इफिसियों 2:8-9

 उसने नवजीवन के जल और पवित्र आत्‍मा की संजीवन शक्‍ति द्वारा हमारा उद्धार किया। उसने हमारे किसी पुण्‍य धर्म-कर्म के कारण ऐसा नहीं किया, बल्‍कि इसलिए कि वह दयालु है।" - तीतुस 3:5


आखिर मे इतना बताना चाहता हूं।

परमेश्‍वर के साथ व्यक्तिगत् सम्बन्ध आरम्भ करने के लिए, सबसे पहले, आपको अपने भरोसे को केवल यीशु पर ही रखना होगा।

परमेश्वर आपके मन को जानते हैं और वह आपके शब्दों की अपेक्षा आपके मन के व्यवहार में अधिक रूचि रखते हैं।

आप इसी क्षण यीशु को प्रार्थना के माध्यम से ग्रहण कर सकते हैं।

प्रार्थना परमेश्वर के साथ वार्तालाप है।

एक प्रार्थना आपके लिए!!

प्रभु यीशु,

मैं आपको व्यक्तिगत् रूप से जानना चाहता हूँ।

अपने तरीके से अपना जीवन संचालित करते रहने के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ। कृपया मुझे, मेरे सारे पापों से क्षमा कीजिए।

मेरे पापों को अदा करने के लिए, क्रूस पर मरने के लिए आपका धन्यवाद।

मैं अपने पुराने चालचलन को छोड़कर, और आपको अपना मुक्तिदाता और प्रभु मानते हुए, आपके पीछे चलने का निर्णय लेता हूँ।

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क्या आप यह अर्थपूर्ण रूप से परमेश्वर से कह सकते हैं?

क्या ऐसी कोई बात है जो आपको इसे अभी इसी समय कहने से रोक रही है?



Prayer Line..... Elohim Youth For Mission Odisha 

Br. Narottam Majhi 9567377469.........6282287215





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